पुष्य (फूल)- देवताओं को अथवा अपने किसी भी आराध्यदेव को पुष्प अर्पित करने का अर्थ होता है, उनको प्रसन्न करके उनकी कृपा प्राप्त करना ! आध्यात्मिक साधना में विभिन्न प्रकार के फूल प्रयोग किये जाते हैं। फूल या पुष्प अर्पित करते समय यह बात स्मरण रखनी चाहिए कि किस देवी या देवता को कौन-सा पुष्प अर्पणकरना है। देवी-पूजा में प्रायःलाल फूलोंकाप्रयोग किया जाता है। सरस्वती को श्वेत और बगलामुखी देवी को पीत वर्ण के पुष्प अर्पित किये जाते हैं। विष्णु-पूजा में धतूरा, मदार और कनेर के पुष्प वर्जित हैं, तथा शिव-पूजा में तुलसी और मंजरी के पुष्प विषेध हैं। -चंदन- महाकवि रहीम ने अपने दोहे में कहा है-- जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सके कुसंग। 'चंदन विण व्याप नहीं, लपटे रहत भुजंग।।
अर्थात् चंदन एक अति पवित्र, बहु उपयोगी और सुगंधित काष्ठ (लकड़ी) है। शृंगार,
औषधि, हवन, लेप और पूजन इत्यादि में तथा मृतक-संस्कार तक,जीवन के सभी क्षेत्रों में यह प्रयुक्त होता.चंदन लाल और
ग ले प्रकार का पाया जाता है। लाल चंदन का प्रयोग गणेश,
दुर्गा, काली, लक्ष्मी आदि को प्रिय है,
तो सफेद चंदन का प्रयोग देव-प्रतिमाओं पर लेपन
के लिए होता है। प्रयोग करने से पूर्व यह अवश्य देख लेना चाहिए कि चंदन असली है या
नहीं? चंदन असली होना चाहिए।
दीपल-आध्यात्मिक साधना में दीपक की लौ साधक के ध्यान को एक बिंदु-विशेष
पर केंद्रित करती है। यह लौ एक अलौकिक प्रभाव की सृष्टि करती है। सात्विक साधना में
घी का दीपक जलाया जाता है, तो अभिचार-कर्मों में कड़वे तेल के साथ-साथ चर्बी
तक का प्रयोग किया जाता है। अभिचार-कर्म प्रत्येक व्यक्ति नहीं कर सकता,
किन्तु जो करता है,
उसके लिए दीपक जलाना अनिवार्य होता है । दीपक
प्रकाश का जनक, ज्ञान का प्रतीक और वातावरण - का शोधक होता है।
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हवन-मंत्र-साधना में हवन के उद्देश्य भेद से विभिन्न
प्रकार की लकड़ियों से आहुति देने का विधान है। आम की लकड़ी का विशेष प्रयोग होता है।
विशिष्ट मंत्र अथवा देव-विशेष की जैप..
साधना में कुछ विशिष्ट हवनीय द्रव्य द्वारा भी कर्म किया जाता
है।हवन की प्रक्रिया में यय, तिल, चावले, घृत और शर्करा के मिश्रण
से शाकल्य बनाकर उसके साथ घृत की अग्नि से आहुति देने का । निर्देश
दिया जाता है।
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