Mantra Shakti

Mantras are very powerful and helpful to manifest desired situation in life. Here, We have tried to give you Introduction of all types of Mantras and its uses. There are many mantras and yantra, each one is useful, it upto you,one should select mantra based on nature and desire. we advise you to take expert advise before you start any mantra anusthan.

मंत्र विद्या से संबंधित नियम

 नियम के बिना जीवन में कुछ भी संभव नहीं है, क्योंकि नियम से कार्य-विधि और उसकी परिणति निश्चित रहती है। मंत्र, तंत्र, जप और तप में विद्वान् महर्षियों ने अपने दीर्घकालीन अनुभवअध्ययन के आधार पर अनेक प्रकार के नियम बनाकर जनसामान्य को उस विषय के अनुकूल और प्रतिकूल प्रभावों से परिचित कराया। नियमों के आभाव में सर्वत्र अनिश्चितता रहती; न तो कोई कार्य व्यवस्थित रूप में संपन्न होता और न ही उसकी निश्चित परिणति ही होती। अनुमान के आश्रय कार्य संपन्न होते, जिसमें शंका ही अधिक रहती।मंत्र-सिद्धि में सुगमता और निश्चित परिणाम के लिए नियमों का महत्त्व सर्वोपरि है।

- अध्यात्म के क्षेत्र में नियमों का प्रतिबंध तो बहुत ही सख्त है, क्योंकि जरा-सी चूक, शिथिलता अथवा प्रमाद से असफलता ही नहीं, बल्कि भयंकर संकट भी सामने आ उपस्थित होते हैं। नियमानुकूत साधना निरापद और लाभप्रद रहती है, जबकि नियम-विरुद्ध साधना का परिणाम असफलताजनक और दुःखद व पीडादायक होता है। इसी कारण नियमों की अनिवार्यता साधना के सभी क्षेत्रों में समान रूप-से स्वीकार की गयी है।

- मंत्रादि की साधना में साधक को नियमों के प्रति सावधान रहना चाहिए। कभी भी नतोनियम के विरुद्ध चलना चाहिए और नही उनकी अवहेलना ही करनी चाहिए। नियमों का पालन करने से मांत्रिक कार्यों में त्रुटि की आशंका नहीं रहती। आध्यात्मिक साधना में प्रवृत्त होने का उद्देश्य चाहे जो भी हो, तत्संबंधी नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है। आध्यात्मिक नियोजन के रूप में, विधि-विधान के साथ की गई मंत्र-साधना के नियम निग्न

स्थान *उत्तम वातावरण की सृष्टि के लिए उत्तम स्थान का होना अत्यंत आवश्यक है। मंत्र साधना में एक निश्वित और निर्धारित स्थान की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण होती है। अध्यात्म के मनीषियों ने प्रत्येक कार्य के लिए अनुकूल स्थान का निर्देशक । वर्जित अथवा त्याज्य स्थान में की गई साधना निष्फल ही है। जहां जी चाहा बेठकर जप-तप अथवा मंत्र-तंत्र की मा करने लगें, यह बात उचित कदापि नहीं है। कार्य विकास विशेष अथवा मंत्र प्रयोग-विशेष और समय के आधार भिन्न-भिन्न स्थान ही उपयोगी होते हैं। जैसे किंहीं विशेष का (अभिचार आदि) के लिए तो श्मशान, बध-भूमि और जनभार्ग को ही साधना के लिए प्रभावकारी माना जाता है। किन्तु सामान्यतः शांति-पष्टि कार्यों के लिए, भौतिक समस्याओं के समाधान के लिए शद्ध और पवित्र स्थान को ही साधना के लिए उपयुक्त माना गया है। अनेक मंत्रों की साधना, साधक अपने मकान के किसी एक कक्ष में भी कर सकता है; यदि उसे उचित ढंग से साफ-सथरा किया गया हो अथवा लीपा-पोता गया हो।

- मंत्र आदि के अनुष्ठानों की निर्विन और फलदायक साधना के लिए पर्वतीय क्षेत्र, घाटी यो तराई (उपत्यका), गुफा, वन, नदी किनारे, सिद्ध पीठ, पीपल के नीचे अथवा तपोभूमि जैसे स्थान ही उचित होते हैं। असुरक्षित अथवा अशुभ स्थानों में मांत्रिक द्वारा किया गया कोई भी कार्य फलदायक तो होता ही नहीं, अपितु मांत्रिक के लिए अनेक प्रकार की बाधाएंशत्रुवत् आ खड़ी होती है। मंत्र-तंत्र साधना जैसे कार्यों के लिए उचित और शास्त्र-सम्मत स्थान ही ग्राह्य होता है। वर्जित स्थानों का प्रयोग तो भूलकर भी नहीं करना चाहिए, क्योंकि कभी-कभी तो स्थान का दुष्प्रभाव साधक के लिए प्राण-संकट उत्पन्न कर देता है। ऐसे साधक जो संयमपूर्वक पत्र-साधन करन की क्षमता और उत्साह रखते हैं और परिस्थितियोंवशउपर्युक्त स्थानों में नहीं पहुंच सकते, तो उन्हें अपने घर, बगीचे, आसपास के किसी देवालयादि में कोई एकांत स्थान चुन लेना चाहिए; वह स्थान में

उनके लिए उत्तम और प्रभावकारी होगा।
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