विद्वान मात्रिको सदा को नियमों के अंतर्गत महत्ता
का प्रतिपादन किया है और यह ठीक भी साधना अधया ध्येय में श्रदा न रहने से वह सफल सकती।
इसलिए साधक का कर्तव्य है कि वो मंत्र-जा में भला और विश्वास से कार्य में संलग्न रहे।
ऐसा कर मन एकाय होगा और वो अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकेगी .
"नष्टो मोहाः स्मृतिर लब्धा",
अर्थात् मोह के कारण मानि का नाश होता है। मोहित
व्यक्ति उचित-अनुचित में भेद नहीं है। पाता। उसकी विवेक-शक्ति नष्ट हो जाती है,
जिसके परिणामस्वरूप उसकी स्मृति कार्य नहीं करती।
गीता के अनुसार, “सम्मोहात स्पति
विनम, स्मृति भंशाद बुद्धि नाशः",
अर्थात् सम्मोहन से स्मृति भ्रमित होती है और
स्मृति के भ्रमित होने से बुद्धि का नाश होता है। . शारीरिक और मानसिक व्याधियां .
चरक संहिता में अनेक शारीरिक और मानसिक व्याधियोंको स्मरण में बाधककारक बतलाया गयाहै।उदाहरणकेलिएस्मृत्याभाव
के कारण अपस्मार (मिर्गी) जैसे मानसिक रोग दिखलाई पड़ते हैं। शरीर में रजस और तमस गुणों
के बढ़ जाने से भी स्मृति का नाश होता है । क्रोध, भय, ईष्या, हर्ष, दुःख, चिंता तथा अन्य तीव्र संवेगों की स्थिति में हृदय
तथा अन्य आंतरिक अंगों पर प्रभाव पड़ता है, जिससे स्मृति और चेतना नष्ट होती है । इस प्रकार
मानसिक संतुलन का नष्ट होना, आशक्ति का अत्यधिक बढ़ जाना, मोह तथा शरीर में गुणों का संतुलन न रहना समृत्याभाव
के कारण हैं।
प्रवृत्ति प्रवृत्तिमंचिकीर्षा,
कृतिसाध्यताज्ञान,
इष्टसाधनताज्ञान,
“बलबद अनिष्टाननुबंधित्वज्ञानाभाव",
अर्थात् इस ज्ञान का अभावकि उस तत्त्व का प्रत्यक्षीकरण सम्मिलित होता है । प्रभाकर
ने प्रवृत्ति में कार्य काज्ञान,चिकीर्षा, कृतिसाध्यता ज्ञान,प्रवृत्ति अथवा कृति,चेप्टा और क्रियायेपांच सोपानमाने हैं। कोई भीजानबूझ कर कियाआप्रयत्न
इनपांचोंसोपानोंसेनिकलताहै।कार्यताज्ञान अर्थात्यहज्ञानकिकोई कार्य किया जाना चाहिए,अनकविचारकों के विवेचन का विषय रहा है।गागाभट्ट
ने इसके दो प्रकार माने हैं- एक में तो यह धारणा रहती है कि यह कार्य मेरे द्वारा किया
जा सकता है और दूसरे में यह धारणा रहती है कि यह कार्य मेरे द्वारा किया जाना चाहिए
। इस दूसरे प्रकार के कार्य में ही सभी प्रकार के नित्य और नैमित्तिक कर्म आते हैं।
किसी भी वस्तु पर ध्यान जमाने से वह स्मृति में
स्थान पा लेती है और बाद में उसकी याद आती है। कोई वस्तु (या बात) कठिनता से याद आती
है। इसका कारण भी स्मृति से ध्यान का संबंध है। ध्यान रहने पर स्मृति तीव्र होती है।
स्मृति के लिए यह आवश्यक है कि मन को अनावश्यक विचारों से खींचकर आवश्यक विषय पर केंद्रित
किया जाए। ऐसा होने से उसके स्मरण में सरलता होती है। ध्यान रहे कि स्मृति का कार्य
भी मनस नहीं करता, बल्कि उसके माध्यम से आत्मा करती है। अतः सक्रिय
स्मृति के लिए . सक्रिय ध्यान आवश्यक है। ।
ध्यानस्पष्ट और विवेकयुक्तचेतनाकी अवस्था है ।ध्यानकी
एकाग्रता बढ़तेजाने के साथ-साथचेतनाका क्षेत्रघटता जाताहै,तथा विषयकीस्पष्टता बढ़ती जातीहै।ध्यानरुचिपरनिर्भर
होता है ।मन में अनेकप्रकारकी रुचियांहोने पर भीउनमें सबसे अधिकप्रबलरुचि .. ही ध्यान
को निर्धारित करती है।ध्यान मन की एकाग्रता है।
0 comments:
Post a Comment