हमारे ऋषि-मुनियों ने क्षमा की गणना यमों के अंतर्गत की है।
श्रेष्ठ मनुष्यों में क्षमा का भाव सदा विद्यमान रहता है, क्योंकि जिस व्यक्ति में यह भाव नहीं होता, उसे कठोर और निर्दयी माना जाता है। क्षमा के बिना क्रोधं पर
नियंत्रण नहीं हो सकता। क्रोध एक ऐसा दुर्गुण है, जो बुराइयों को उत्पन्न करने वाला समझा जाता है। गीता में काम और क्रोध के
बारे में लिखा है
काम एष क्रोय एष रजोगुणसमुद्भवः । महाशनो महापाप्मा
विद्येनमहि वैरिणम् ।।
जिस व्यक्ति में क्षमाभाव है, वो अपराधी को क्षमाकानी मानवताही समझता है। कोई उसका कितना ही अहित या मा
क्यों न करे,
वो उसे क्षमा कर देता है। यदि उसके कारण उसका भी आ जाए, तो उसे तत्काल दबा लेता है और उसका अहित का की कभी इच्छा
नहीं रखता। दूसरे के बहकावे में आकर भी को उसका अहितकरने की बातमनमेंनहीं लाता। इस
प्रकार क्षमा भावी पुरुष क्रोध-रहित रहता हुआ सदा झंझट और क्लेश को टालने का
प्रयत्नकरतारहताहै और उसकावहप्रयत्नलोककल्याण में सहायक होता हुआ आत्मोन्नति का
कारण बन जाता है।'
भय करना.
उपर्युक्त किसी भी भय से मुक्त हुआ व्यक्ति अभय या निर्भय
कहा जाता है। किसी भी साधना का आरंभ तभी करना चाहिए, जब किसी भी प्रकार का भय नहो। गरुजनों की आज्ञा का पालन करने से उनका भय मिट
जाता है। समाज के नियमों का पालन करने से समाज का भय नहीं रहता। निदित कार्यों के
न करने से अपयश के भय का सामना नहीं करना पड़ता। मित्र भाव रख सशत्र और विरोधियों
का भय नहीं रहता. प्रायः सभी प्रकार
भय संसारी व्यक्तियों के लिए संताप देने वाले होते हैं।
साधन परिपक्व होने पर साधक में इतना आत्मबल आ जाता हाव भी भय उसे उद्वेलित नहीं कर
सकता। किन्त इस प्रकार का भी मन की निर्भयता से ही होता है।
मबल आ जाता है कि कोई तु इस प्रकार का आत्मबल
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