Mantra Shakti

Mantras are very powerful and helpful to manifest desired situation in life. Here, We have tried to give you Introduction of all types of Mantras and its uses. There are many mantras and yantra, each one is useful, it upto you,one should select mantra based on nature and desire. we advise you to take expert advise before you start any mantra anusthan.

जप फल और माला का प्रभाव

 मंत्र कोई भी हो और किसी भी प्रकार का ही, उसके उच्चारण करने को ही "जप" कहते हैं। जप करना मंत्र-साधना अथवा मंत्र-प्रयोग का क्रियात्मक रूप है। जप मंत्र-कर्म का अपरिहार्य अंग है। जप के बिना मंत्र-साधन के बारे में तो सोचा तक भी नहीं जा सकता । जप के द्वारा दैवी-शक्तियों का आह्वान किया जाता है और उनकी शक्ति प्राप्त की जाती है। लगभग सभी साधनाओं: किसी-न-किसी मंत्र का जप अनिवार्य होता है। जप के संबंध में अनेक प्रकार के निर्देश प्राप्त होते हैं। । सिद्धासन या पद्मासनकी अवस्था में बैठकर और एकाग्रचित्त होकर मंत्र एवं उसके देवता के स्वरूप का चिंतन करते हुए न तो अधिक शीघ्रता से और न बहुत मंद गति से जप करना चाहिए। मंत्र के अर्थ की भावना बराबर करते रहने से एकाग्रता बनी रहती है। जपकर्ता को चाहिए कि वो अहंकार, घमंड अथवा गर्व का भाव मन में न लाएं तथा इष्टदेव को अपना सर्वस्व समर्पण करने की प्रवृत्ति रखे और इसके साथ ही शुभ संकल्प का होना भी आवश्यक है। अतः गुरु द्वारा जो मंत्र प्राप्त किया है, उस पर अडिग विश्वास रखते हुए ध्यानएवं मननपूर्वक जप करना चाहिए। साथ ही ज़पकर्ता को चाहिए कि वो जप करते समय निम्न बातों का भी ध्यान रखे

१. मंत्र-जप के समय चित्त में प्रसन्नता का अनुभव करें।

२. स्वयं को जिस कार्य में लगाया है, उसकी पूर्ति के लिए • अपने आपको समर्थ मानें।

किसी से भी बात करने का प्रयास कदापि

३. मौनता बनाए रखें।

४. जप के समय किसी से भी बात करने न करें।

५. मंत्र के अर्थ का चिंतन करते रहें।

६. किसी भी प्रकार की बेचैनी का अनुभव न को भाव से जप करें।

७. अपने कार्य के प्रति सदा उत्साह बनाए रखें।

जप के लिए माला का होना अत्यंत आवश्यक है। हम कारण यह है कि मंत्र द्वारा कामना-पूर्ति के नियमों में मंत्र-जपही ". एक निश्चित संख्या का पूरी होना आवश्यक होता है। ऐसी स्थिति में जप की गणना के लिए माला ही सर्वश्रेष्ठ साधन ।

- वशीकरण तथा आकर्षण मंत्रों को मोती या मूंगे की माला से जये, विद्वेषण तथा उच्चाटन के मंत्रों को बहेड़े की माला से जपें। धार्मिक कार्यों के लिए नन्हें शंखों की माला उपयुक्त रहती है। रुद्राक्ष तथा चंदन की माला के द्वारा मंत्र जपने से संपूर्ण कामनाएं सिद्ध हो जाती हैं। कमलगट्टे की माला शत्रु नाश और धन-प्राप्ति के लिए प्रयुक्त होती है। पुष्टि-कर्म अथवा सात्त्विक-अभीष्ट की पूर्ति हेतु चांदी की माला को बहुत अधिक प्रभावी माना जाता है। ..

मूग की माला २७ दानों की, बहेड़े की १५ दानों की तथा रुद्राक्ष या चंदन की माला १०८ दानों की होनी चाहिए। १०८ मनको के अतिरिक्त एक मनका कुछ बड़े आकार का होना चाहिए, जिसे सुमेरु कहते हैं। मनकों के बारे में कहा गया है। अरिष्टपत्रं बीजं च शंखपदमौ मणिस्थता। कुशग्रंथिश्च रुद्राक्ष उत्तमा चोत्तरोत्तरम् ।। प्रवालमुक्तास्फटिकैजपः कोटिफलप्रदः। तुलसीमणिभिर्येन गणितं चाक्षयं फलम्।। अर्थात् अरीठ के पत्ते, उसके बीज, शंख, कमलगट्टे, मामें गांठ लगाकर, रुद्राक्ष, मूंगा, मोती, स्फट्रिक और तुलसी के मनक उत्तरोत्तर अक्षय फल देने वाले हैं। प्रत्येक पन के बीच में गाँट लगी होनी चाहिए। माला की गूंथने के लिए, सोने चांदी या तांद का तार का प्रयोग भी किया जा सकता है। लाल, पीले या सफेद रेशमी डोरे का प्रयोग भी हो : कता है। जप के समय सावधानी बरतने के लिए कहा गया है

वस्त्रैणाच्छाय तु कर दक्षिणं यः सदा जपेत्। तस्य स्यात् सफलं जाप्यं तद्रीनपफलं स्मृतम् ।। अतएव जपार्थ सा गोमुखी नियंते जनः। यक्षरक्षः पिशाचाश्च सिद्धविद्याधरा गणाः।।

यस्मात् प्रभावं गृहति तस्मात गुह्यं तु कारयेत् ।। । अर्थात् दाहिने हाथ को वस्त्र के द्वारा ढककर सदा जरा करना चाहिए। ऐसा न करने से जप हीन फल देने वाला होता है इसलिए जप करने वाले लोग गोमुखी रखते हैं। चूंकि यक्ष, राक्षस, भूत, पिशाच, सिद्ध और विद्याधर गण माला के जप का प्रभाव ग्रहा कर लेते हैं, अतः माला को गुप्त रखना चाहिए।

- माला को प्रयोग करते समय माला को प्रातः नाभि के गास, : मध्याह में हृदय के पास और सायंकाल के समय नासिका के सामने रखनी चाहिए। माला जप के समय मंत्र का उच्चारण स्पष्ट, एक-दूसरे वर्ण का अकारण मिश्रण न करते हुए होंगों को हिलाना बंद करना चाहिए।माला को मध्यमा उंगली के मध्य पर्व पर अथवा अनामिका के मध्य पर्व पर रखें तथा अंगूठे के प्रथम पर्व से एकेक मनक को एकेक मंत्र बोलने के पश्चात् घुमाएं तथा तर्जनी को सीधी इस प्रकार रखें कि वह माला का स्पर्श न करने पाए। नाखूनों का स्पर्श भी दोषपूर्ण माना जाता है। यदि माला जपते समय छींक या कोई अंय व्यवधान आ जाए, तो आचमन करें अथवा नेत्र और दाहिने कान की जल लगाकर स्पर्श करें। मंत्र जप के बीच में बोलना

सी मनके से घुमाकर जप

या बातचीत करना वर्जित है । माला में सुमेरु का उल्लंघन है।समेरु के पास पहुंचने पर माला को उसी मनके से यया. करना आरंभ कर दें । मनके को सदा अपने हदय की सामने की ओर नहीं ! माला को खटखटाना, बार-बार यह है कि सुमेरु कब आएगा, उचित नहीं है । सिर या शरीर को जप करते हुए ऊंघना, माला लाथ से छूट जाना आदि दोषी बचना चाहिए।

विशेष-प्रायः १०८ दानों की माला ही अधिक प्रयुक्त होती है। मंत्र-कर्म में तो इसी का विधान है। यदि १०८ दानों की माला हो, तो उसका मात्र १० बार फेरने का अर्थ हुआ कि आपने मंत्र का १०४० बार जप पूर्ण कर लिया है। जपते समय माला का फेरा पूरा हो जाने पर, सुमेरु तक पहुंचकर वहीं से फिर विपरीत दिशा मेंजप प्रारंभ कर देना चाहिए।सुमेरु को लांगकर आगे बढ़ना निषिद्ध है 

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